चाणक्य के इन 4 श्लोकों में छिपा है सफलता का राज, जो सोचता है वही हो जाता है सफल
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
अर्थ- जो व्यक्ति शास्त्रों के नियमों का निरंतर पालन करते हुए शिक्षा प्राप्त करता है, उसे सही-गलत और शुभ-अशुभ का पूर्ण ज्ञान होता है।
ऐसे व्यक्ति के पास श्रेष्ठ ज्ञान होता है। यानी ऐसे लोगों को जीवन में आसानी से सफलता मिल जाती है।
प्दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
अर्थ- इस श्लोक के माध्यम से आचार्य कहते हैं कि कभी भी दुष्ट पत्नी, झूठे मित्र, चालाक सेवक और
साँप के साथ नहीं रहना चाहिए। यह बिल्कुल मौत को गले लगाने जैसा है
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि.
नआत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि.
अर्थ- भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए धन की बचत अवश्य करनी चाहिए।
वहीं यदि पत्नी को कोई खतरा हो तो धन की बलि देकर उसकी रक्षा करनी चाहिए।
लेकिन अगर आत्मा की रक्षा करने की बात आती है तो उसे धन और पत्नी दोनों से पहले आत्मा की रक्षा करनी चाहिए।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः ।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ।।
अर्थ- ऐसे देश में नहीं रहना चाहिए जहां न सम्मान हो, न रोजगार का साधन हो और न मित्र हो
साथ ही जिस स्थान पर ज्ञान न हो उसे भी त्याग देना चाहिए।