जीवन में यह एक गलती सभी अच्छी चीजों को नष्ट कर देगी, व्यक्ति न तो घर का रहता है और न ही घाट का। 

आचार्य चाणक्य ने नैतिकता में एक ऐसी बात का उल्लेख किया है जिसे जीवन में किसी भी परिस्थिति में दांव पर नहीं लगाना चाहिए।  

चाणक्य कहते हैं कि कलियुग में ज्यादातर लोग अपने फायदे के लिए संबंध बनाते हैं।  आप दूसरों के लिए 

कितना भी अच्छा करें, वे आपका साथ तभी तक देंगे जब तक उनका लाभ आपसे जुड़ा रहेगा। 

कभी-कभी लोग अपने अस्तित्व को जोखिम में डालते हैं जहां अधिक विश्वास होता है, लेकिन चाणक्य के अनुसार ऐसा करना मूर्खता है क्योंकि 

जिस दिन दूसरे व्यक्ति को लगेगा कि आप किसी काम के नहीं हैं, वह अपना असली चेहरा दिखाएगा। 

सबकी अपनी-अपनी पहचान होती है, इसे दूसरों के लिए कुर्बान न करें।  यही  पहचान आपको औरों से अलग करती है।  आस्था और अंधविश्वास में बहुत बड़ा अंतर  है। 

किसी की पहचान (अस्तित्व) को दांव पर लगाना किसी की प्रतिष्ठा को कम करता है। 

ऐसे लोग बाहरी तौर पर ही नहीं बल्कि अपनी ही नजरों में गिर जाते हैं जब  भविष्य में उनका विश्वास टूट जाता है।  फिर न घर की और न घाट की। 

अस्तित्व के नुकसान पर, सभी अच्छाइयों को छीन लिया जाता है, एक चापलूस के रूप में देखा जाता है, दूसरों के दास के रूप में देखा जाता है।